प्रेम- सिर्फ प्रेम होता है.... हां उसके रूप अनेक हो सकते हैं।
मां का प्रेम ममता, तो पिता का प्रेम एक भावना और आदर्श के रूप में, बहन का एक जिम्मेदारी का एहसास लिए तो पत्नी का समर्पण और त्याग का प्रतीक, पति का अपने फर्ज़ रूप में प्रेम के बहुत सारे रूप हैं।
लेकिन मेरी नजर में प्रेम रूह की गहराई का एक वो समुंदर है जिसमें प्रम तो समाहित है ही, साथ में उसकी गहराई में उसकी लहरों पर खुद उसके दिल को छूने वाली शरारतें और एक नर्म ओस की तरह पवित्र एहसास जब समा जाता है तो उसकी हर लहर पर मोहब्बत के तराने अपनी एक अलग धुन में मचलने लगते हैं ओर अपनी उन लहरों के साथ-साथ हर प्रेमी के दिल में मंदिर में बजने वाली पवित्र घंटियों का एहसास जगाते हैं।
पेम वासना रहित है उसमें...